Apj Abdul Kalam Autobiography Success Story to Get Motivation
Hii Friends; कैसे हैं आप सब? आज हम Dr. एपीजे अब्दुल कलाम के Biography की चर्चा करेंगे जो कि Galzar Saab द्वारा बयां की गई। आप एपीजे अब्दुल कलाम की बुक को भी पढ़ सकते हैं जो कि अत्यंत प्रेरणादाई है। तो चलिए शुरू करते हैं।
मै एक गहरा कुआं हूं इस जमीन पर, बेशुमार लड़की और लड़कियों के लिए उनकी प्यास बुझाता रहूं। उसकी बेपनाह रहमत उसी तरह जर्रे-जर्रे पर बरसती है, जैसे कुआं सब की प्यास बुझाता है।
इतनी सी कहानी है मेरी। जैनुलाब्दीन और आशी अम्मा की बेटे की कहानी। उस लड़के की कहानी जो अखबारे बेचकर अपनी भाई की मदद करता था। उस जागृद की कहानी जिसकी परवरिश शिव सरवन्यम अय्यर और अय्यर दोराई सालोमन ने की। उस विद्यार्थी की कहानी जिसे पंडवी मास्टर ने तालीम दी, एमजी के मेनन और प्रोफेसर साराभाई ने इंजीनियर की पहचान दी। जो नाकामियों और मुश्किलों में पलकर साइंस्तान बना।
मेरी कहानी मेरे साथ खत्म हो जाएगी क्योंकि दुनिया में मेरे पास कोई पूंजी नहीं है मैंने कुछ हासिल नहीं किया जमा नहीं किया मेरे पास कुछ नहीं, और कोई नहीं ना बेटा ना बेटी ना परिवार। मैं दूसरों के लिए मिशाल नहीं बनना चाहता, लेकिन शायद कुछ पढ़ने वालों की प्रेरणा मिले, की अंतिम सुख रूह और आत्मा की तस्कीन है। खुदा की रहमत उनकी वरासत है। मेरे परदादा अबुल, मेरे दादा पकीर और मेरे वालिद जैनुलाब्दीन का खानदानी सिलसिला अब्दुल कलाम पर खत्म हो जाएगा! लेकिन खुदा की रहमत कभी खत्म नहीं होगी क्योंकि वे अमर हैं।
About Apj Abdul Kalam
APJ Abdul Kalam Autobiography
मैं शहर रामेश्वरम के एक मिडिल क्लास तमिल खानदान में पैदा हुआ। मेरे अब्बा जैनुलाब्दीन के पास ना तालीम थी ना दौलत लेकिन इन मजबूरियों के बावजूद उनके पास हौसला था और मेरी मां जैसी मददगार थी आशी अम्मा। उनकी कई औलादो में से एक मैं भी था। अपनी पुश्तैनी मकानों में रहते थे जो कभी 19 वी सदी को बना था काफी बसी और पक्का मकान था रामेश्वरम में। मेरे अब्बा हर तरह के ऐसो आराम से दूर रहते थे मगर जरूरिआत्त की तमाम चीजें मुअसर थी। सच तो यह है मेरा बचपन बरा महफूज था मांती तौर पर भी और जज्बाती तौर पर भी।
रामेश्वरम का मशहूर शिव मंदिर हमारे घर से सिर्फ 10 मिनट की दूरी पर था। हमारे इलाके में ज्यादा आबादी मुसलमानों की थी, फिर भी काफी हिंदू यहां थे जो काफी अच्छे से पड़ोस में रहते थे। हमारे इलाके में एक बड़ी पुरानी मस्जिद थी जहां मेरे अब्बा मुझे हर शाम नवाज पढ़ने के लिए ले जाते थे। रामेश्वरम मंदिर के बड़े पुरोहित पक्षी लक्ष्मण शास्त्री मेरे अब्बा के पक्के दोस्त थे। मेरे बचपन की यादों में आपकी हुई याद इत्यादि अभी थी कि अपनी-अपनी रिवायती लिबास में बैठे हुए वे दोनों कैसे रूहानी मसलों पर देर-देर तक बातें करते रहते थे।
मेरे अब्बा मुश्किल से मुश्किल रूहानी मामलों को भी तमिल के आम जवान में बयान कर लेते थे। एक बार मुझसे कहा था;
"जब आफत आए तो आफत की वजह समझने की कोशिश करो मुश्किलें हमेशा खुद को परखने का मौका देती है।"
मैंने हमेशा अपनी साइंस और टेक्नोलॉजी मैं अपने अब्बा के वसूलों पर चलने की कोशिश की है। मैं इस बात पर यकीन रखता हूं कि हमसे ऊपर भी एक का एक आला ताकत है एक महान शक्ति है, जो हमें मुसीबत मायूसी और नाकामियों से निकालकर सच्चाई की मुकाम तक पहुंचाती है।
मैं करीब 6 वर्ष का था जब अब्बा ने एक लकड़ी की कश्ती बनाने का फैसला किया, जिसमें वह यात्रियों को रामेश्वरम से धनुष्कोड़ी का दौरा करा सकें ले जाएं और वापस ले आए। वे समुंदर के साहिल पर लकड़ियां बिछाकर कश्ती का काम किया करते थे एक और हमारे रिश्तेदार के साथ अहमद जलालुद्दीन। बाद में उनका निकाह मेरी आबा जोहरा के साथ हुआ। अहमद जलालुद्दीन हालांकि मुझसे 15 साल बड़े थे फिर भी हमारी दोस्ती आपस में जम गई थी हम दोनों हर शाम लंबी सैर को निकल जाया करते थे मस्जिद गली से निकल कर हमारा पहला पड़ाव शिव मंदिर हुआ करता था जिसके गिर्द हम उतनी ही श्रद्धा से परिक्रमा करते थे जिस श्रद्धा से वहां के आए हुए यात्री। जलालुद्दीन ज्यादा पढ़ लिख नहीं सके उनके घर के हालात के कारण, लेकिन मैं जिस जमाने की बात कर रहा हूं उन दिनों हमारे इलाके में सिर्फ वही एक शख्स था जो अंग्रेजी लिखना जानता था। जलालुद्दीन हमेशा तालीम याफ्ता पढ़े लिखे लोगों के बारे में बातें करते थे। साइंस के इजाद, मेडिसिन और उस वक्त के लिटरेचर के जिक्र किया करते थे। एक और शख्स जिसने बचपन में मुझे बहुत मुतासिर किया वह मेरा कजन था मेरा चचेरा भाई समसुद्दीन, उसके पास रामेश्वरम में अखबारों का ठेका था। और सब काम अकेले ही किया करता था हर सुबह अखबार रामेश्वरम रेलवे स्टेशन पर ट्रेन से पहुंचता था।
सन् 1939 में दूसरी आलमगीर जंग शुरू हुई 2nd World War. उस वक्त में 8 साल का था। हिंदुस्तान को एक तिहाई फौजियों के साथ शामिल होना पड़ा। और एक इमरजेंसी जैसे हालात पैदा हो गए थे सबसे पहली दुर्घटना यह हुई कि रामेश्वरम से शिवधर आने वाली ट्रेन कैंसिल कर दिया गया और अखबारों का इकट्ठा रामेश्वरम और धनुष्कोड़ी के बीच से गुजरने वाली सड़क पर चलती ट्रेन से फेंक दिया जाता । समसुद्दीन को मजबूर हैं एक का मददगार रखना पड़ा जो अखबारों का गट्टा चुनकर जमा कर सके। वह मौका मुझे मिला। और समसुद्दीन मेरी पहली आमदनी का वजह बना।
"हर बच्चा जो पैदा होता है वह कुछ सामाजिक और आर्थिक हालात से जरूर असर अंदाज होता है और कुछ अपने जज्बाती माहौल से भी। उसी तरह उसकी कर्वियत होती है।" मुझे सेल्फ डिसीप्लिन अपने अब्बा से विरासत में मिला था और मां से अच्छाई पर यकीन करना और रहमदिली। लेकिन जलालुद्दीन और समसुद्दीन के शौकत से जो असर मुझ पर पड़ा उससे मेरा बचपन ही महज अलग नहीं हुआ, बल्कि आइंदा जिंदगी पर भी उसका बहुत असर पड़ा।
फिर जंग खत्म हो गई और हिंदुस्तान के आजादी बिल्कुल यकीनन हो गई। मैंने अब्बा से रामेश्वरम छोड़ने की इजाजत चाही, मैं डिस्टिक हेड क्वार्टर रामनाथपुरम जाकर पढ़ना चाहता था। समसुद्दीन और जलालुद्दीन मेरे साथ रामनाथपुरम तक गए मुझे हाई स्कूल में दाखिल कराने के लिए….
Final Words
अगर आप एपीजे अब्दुल कलाम क्या पूरी Biography को जानना चाहते हैं तो ऊपर दी गई गुलजार साहब द्वारा वीडियो को सुनें या फिर नीचे दिए गए किताब को आप पढ़ सकते हैं जोकि अत्यंत ही प्रेरणादायक किताब है… आप सभी को अवश्य हीं एपीजे अब्दुल कलाम की बायोग्राफी को जानना चाहिए। Thanks a lot for Reading Carefully.
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